Wednesday, 7 February 2018

गुरु गोरखनाथ र गोरख चालिसा

गुरु गोरखनाथ आध्यात्मिक आकाशका महान नक्षत्र हुन। शैभीत्य हिन्दु पथ का योगी गुरु गोरखनाथ ,नाथ सम्प्रदायका संस्थापक मानिन्छन - पुर्बिय आध्यात्मिक परम्परामा बहुप्रचलित हठ योगा का संस्थापक गोरखनाथ को वास्तविक भुमी गोरखा जिल्लामा भएको मानिन्छ र उनैको नाम बाट यो जिल्ला रहन गएको हो। पछी उनले भारतको उत्तर प्रदेशमा एउटा मठ स्थापना गरे - र उनले मठ स्थापना गरेको भुमीको नाम गोरखपुर रहन गयो । गोरखपुर मा उनले स्थापना गरेको मठ गोरखनाथ मन्दिर को रुपमा हाल सम्म प्रख्यात छ र ख्याल रहोस त्यो समय गोरखपुर तानसेनको सेन राज्य अन्तर्गत को भुभाग पर्दथ्यो ।उनका आठ वटा ग्रन्थ निकै प्रचलित छन जस्तै :- लय योग , गोरख सम्हिता, गोरख गीता, सिद्ध सिद्धान्त पद्ती , योग मर्तनाद , योग सिद्दान्त पद्ती , योग चिन्तामणी र योग बिज । सिद्ध सिद्धान्त पद्ती उनको प्रारम्भिक ग्रन्थ हो जसमा उनले हठ योग र अबधुत मार्गको बारे बिषद व्याख्या गरेका छन । गोरख मार्गि हरु को बिचमा गोरख चालिसा निकै प्रचलित छ - हेरौ गोरखनाथ चालिसा । :--- दोहा गणपति गिरजा पुत्र को सुमिरु बारम्बार | हाथ जोड़ बिनती करू शारद नाम आधार || चोपाई जय जय जय गोरख अविनाशी | कृपा करो गुरुदेव प्रकाशी || जय जय जय गोरख गुण ज्ञानी | इच्छा रूप योगी वरदानी || अलख निरंजन तुम्हरो नामा | सदा करो भक्त्तन हित कामा || नाम तुम्हारो जो कोई गावे | जन्म जन्म के दुःख मिट जावे || जो कोई गोरख नाम सुनावे | भूत पिसाच निकट नहीं आवे|| ज्ञान तुम्हारा योग से पावे | रूप तुम्हारा लख्या न जावे || निराकार तुम हो निर्वाणी | महिमा तुम्हारी वेद न जानी || घट - घट के तुम अंतर्यामी | सिद्ध चोरासी करे परनामी || भस्म अंग गल नांद विराजे | जटा शीश अति सुन्दर साजे || तुम बिन देव और नहीं दूजा | देव मुनिजन करते पूजा || चिदानंद संतन हितकारी | मंगल करण अमंगल हारी || पूरण ब्रह्मा सकल घट वासी | गोरख नाथ सकल प्रकाशी || गोरख गोरख जो कोई धियावे | ब्रह्म रूप के दर्शन पावे || शंकर रूप धर डमरू बाजे | कानन कुंडल सुन्दर साजे || नित्यानंद है नाम तुम्हारा | असुर मार भक्तन रखवारा || अति विशाल है रूप तुम्हारा | सुर नर मुनि जन पावे न पारा || दीनबंधु दीनन हितकारी | हरो पाप हम शरण तुम्हारी || योग युक्ति में हो प्रकाशा | सदा करो संतान तन बासा || प्रात : काल ले नाम तुम्हारा | सिद्धि बढे अरु योग प्रचारा || हठ हठ हठ गोरछ हठीले | मर मर वैरी के कीले || चल चल चल गोरख विकराला | दुश्मन मार करो बेहाला || जय जय जय गोरख अविनाशी | अपने जन की हरो चोरासी || अचल अगम है गोरख योगी | सिद्धि दियो हरो रस भोगी || काटो मार्ग यम को तुम आई | तुम बिन मेरा कोन सहाई || अजर अमर है तुम्हारी देहा | सनकादिक सब जोरहि नेहा || कोटिन रवि सम तेज तुम्हारा | है प्रसिद्ध जगत उजियारा || योगी लखे तुम्हारी माया | पार ब्रह्म से ध्यान लगाया || ध्यान तुम्हारा जो कोई लावे | अष्ट सिद्धि नव निधि पा जावे || शिव गोरख है नाम तुम्हारा | पापी दुष्ट अधम को तारा || अगम अगोचर निर्भय नाथा | सदा रहो संतन के साथा || शंकर रूप अवतार तुम्हारा | गोपीचंद, भरथरी को तारा || सुन लीजो प्रभु अरज हमारी | कृपासिन्धु योगी ब्रहमचारी || पूर्ण आस दास की कीजे | सेवक जान ज्ञान को दीजे || पतित पवन अधम अधारा | तिनके हेतु तुम लेत अवतारा || अखल निरंजन नाम तुम्हारा | अगम पंथ जिन योग प्रचारा || जय जय जय गोरख भगवाना | सदा करो भक्त्तन कल्याना || जय जय जय गोरख अविनाशी | सेवा करे सिद्ध चोरासी || जो यह पढ़े गोरख चालीसा | होए सिद्ध साक्षी जगदीशा || हाथ जोड़कर ध्यान लगावे | और श्रद्धा से भेंट चढ़ावे || बारह पाठ पढ़े नित जोई | मनोकामना पूर्ण होई ||

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